उत्तराखंड

क्या भू माफियों की नजर में नरेंद्रनगर का कांडा गांव ? पालिका क्षेत्र के विस्तार को लेकर सरकार का ये कैसा दोगलापन ?

नरेंद्रनगर(अरुण नेगी):- नगर पालिका के सीमा विस्तार का मुद्दा एक बार फिर गर्माया हुआ है। एक ओर जहां सत्ताधारी नेता एवं भाजपा के पालिका अध्यक्ष और सभासदों द्वारा नगर पालिका की सीमा विस्तार करने की पुरजोर मांग की जा रही है। वहीं ग्राम पंचायत डौंर व् बड़ेडा के ग्राम प्रधान ने इसे नियम विरुद्ध बताते हुए इसका विरोध किया है।

आपको बता दे की कुछ समय पहले नरेंद्रनगर के ओणि गाव् में G20 का सम्मेलन किया गया था। जिसमे कई देशो के प्रतिनिधियों ने इस में प्रतिभाग किया गया था ,जहाँ इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कई करोडो की लागत का खर्चा भी किया गया। नरेंद्रनगर से महज इस गाँव की दुरी 2 किलोमीटर है। इसे पालिका क्षेत्र में शामिल करने का ख्याल भी शायद यहाँ के जनप्रतिनिधि को नहीं आया होगा। जबकि नरेंद्रनगर से 8 किलोमीटर दूर ग्राम सभा डौंर के कांडा को पालिका में मिलाने की पुर जोर कोशिश की जा रहा है। तमाम तरिके के हथकंडे भी अपनाये जा रहे है
ऐसे में सरकार की मंशा पर भी कई सवाल खड़े होने लाजमी है। एक तरफ ग्राम पंचायत का सिर्फ वह भाग पालिका में मिलने की बात चल रही है। जिसमें अधिकतर भूमि काश्तकारों की है वहीं दूसरी तरफ उसी ग्राम पंचायत का एक वह क्षेत्र जहां पर 2011 की आपदा के आज भी वह अंश दिखाई देते हैं जिन्हें देखकर रूह कांप जाती है। ऐसे में उसे क्षेत्र को दरकिनार करना वह पालिका क्षेत्र में शामिल न करना कई सवालों को भी खड़ा करती है आखिर सबसे बड़ा सवाल भी खड़ा होता है कि अगर ग्राम पंचायत का एक भाग पालिका में शामिल करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ आपदा में आए हुए उसे क्षेत्र को क्यों दरकिनार किया जा रहा है। जिसकी दूरी नरेंद्र नगर से महज 1 किलोमीटर की दूरी पर है

इसका सबसे बड़ा कारण भू माफियों की कांडा गांव पर तिरक्षी नजर भी बताई जा रही है। नरेंद्रनगर के आस पास के गांव की जमीन लगभग बाहरी लोगो द्वारा पहले ही खरीदी जा चुकी है। अब ऐसे में 70 प्रतिशत बिना बिकी हुई भूमि पर भू माफियों की नजर में है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। वहीँ दूसरी तरफ बात करे ग्रामीणों को तो उनका साफ़ तौर पर कहना है की गाँव में सभी तरिके की मूलभूत सुविधाएं मौजूद है।सड़क बिजली ,खेती को लेकर भी वह पूर्ण तरिके से ग्रामीण संतुष्ट है ऐसे में पालिका में शामिल होना कहाँ न्यायोचित है। ग्रामीणों ने बताया की ग्राम पंचायत में हुए विकाश कार्य आज सार्वजनिक नजर आ रहे है। ऐसे में यह कहना उचित नहीं होगा की पालिका में शामिल होने पर ही गांवो का विकाश हो सकता है।

कांडा की 70% कृषि भूमि पर काश्तकारी की जाती है।
विक्रम कैन्तुरा व ग्रामीणों का कहना है कि कांडा में डौंर ग्राम पंचायत के 5% वोटर हैं।कांडा में ग्राम पंचायत की ओर से नालियों, शौचालयों, सड़क, पेयजल, विद्युत, रास्ते, यात्री शेड व चैन फेंसिंग सुरक्षा ग्राम पंचायत के जरिए पहले ही मुहैया कराई जा चुकी है। ऐसे में डौंर वासियों का कहना है कि यदि विकास के लिए पालिका में शामिल होना है तो पूरी ग्राम पंचायत को शामिल किया जाए। ताकि वर्ष 2011 को डौंर गांव में आई आपदा के ज़ख्मों को भरा जा सके।

ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना लाजमी है। जब कांडा को शामिल किया जा सकता है तो पुरे ग्राम पंचायत को क्यों नहीं ?

डौंर के ग्रामीणों का कहना है कि गांव के ऊपरी हिस्सा कांडा को पालिका में शामिल करना, सर को धड़ से कलम करना जैसा है।

वहीं बडेडा ग्राम पंचायत की खुली बैठक में बडेडा गांव को पालिका में शामिल करने का विरोध किया गया है। खुली बैठक में प्रस्ताव पारित कर ग्रामीणों का कहना है कि बडेडा क्षेत्र में ना ही कोई होटल और ना रिजॉर्ट है। वहां की शत प्रतिशत भूमि कृषि काश्तकारी की है। ग्रामीणों का कहना है कि खेती बाड़ी की भूमि को पालिका में शामिल करने का औचित्य समझ से परे है। ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत के गांव क्षेत्र को पालिका में शामिल करने का विरोध जताते हुए कहा कि ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर यदि सरकार अमल नहीं करेगी तो वे आंदोलन को मध्य होंगे।दोनों ज्ञापनों पर डेढ़ सौ से अधिक ग्रामीणों ने हस्ताक्षर किए हैं।

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