इन दिनों पहाड़ो में रुपाई का काम चल रहा हैं, पहाड़ो में हो रही यह रुपाई जेठ आसाढ़ के महीनों में किया जाता हैं।यह रुपाई में गांव के सभी लोग एक दूसरे के खेतों में साथ मिलकर रुपाई के साथ ही अपनी पारंपरिक रीतियों के साथ ही लोकगीतों को गाकर अपनी खुशियां जाहिर कर आंनदित होते हैं यह एक सामूहिक भागीदारी की मिसाल है।इस दौरान गांव में उत्सव का माहौल हुआ करता है।उत्तराखंड के पहाड़ खेती के लिये पूरी तरह बारिश पर निर्भर हैं, यहां सिंचाई के साधन न के बराबर ही हैं, इसलिए पूरे पहाड़ में धान की बुआई आषाढ़ के महीने में हुआ करती है। क्योंकि यह पहाड़ों में ताबड़तोड़ बारिश का महीना है। धान की बुआई के बाद नन्हे पौधों से सजे पहाड़ के सीढ़ीदार खेत शानदार पेंटिंग जैसे दिखाई देते हैं.
आजकल आपको पहाड़ में घुटने तक पानी में घुसे लोगों का समूह दिख जाएगा। इस सबके हाथों में हरे कोमल धान के पौधे होते हैं। लोकगीतो की थाप में कमर झुकाये लोगों का यह समूह तेजी से अपने सीढ़ीदार खेतों पर सरकता दिखाई देगा। आज गांव के इस खेत में तो कल उस खेत में।
रोपाई लगाने से पहले खेत को पूरी तरह पानी में डुबो दिया जाता है। ऐसा करने से खेत की मिट्टी काफी मुलायम हो जाती है। यह पानी आस-पास के गाड़-गधेरों से खेतों की तरफ मोड़ा जाता है। अब पहाड़ में नहरों का जाल और गूल जैसे चीज तो है नहीं सो कच्ची नालियां बनाकर उनके जरिये पानी खेतों तक पहुँचाया जाता है।
रोपाई के लिए अलग-अलग घरों के लिये अलग दिन तय किया जाता है।सभी गांव वाले मिलकर एक परिवार के खेतों में रोपाई लगाते हैं फिर दूसरे परिवार के रोपाई के दिन सभी के खाने और चाय-पानी की व्यवस्था वह परिवार करता है जिसके खेत में रोपाई लगती है।